________________ 44 ... [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः फासाई विरूवरूवाईं। अरई रई अभिभूय रीयइ माहगो अबहुवाई // 10 // स जगोहिं तत्थ पुच्छिंसु एगचरावि एगया रात्रो। श्रवाहिए कसाइत्था पेहमायो समाहिं अपडिन्ने // 11 // अयमंतरंसि को इत्थ ? अहमंसित्ति भिक्खु बाहट्ट / अयमुत्तमे से धम्मे तुसिसीए कसाइए झाइ // 12 // जंसिप्पेगे पवेयन्ति सिसिरे मारुए पवायन्ते / तंसिप्पेगे अणगारा हिमवाए निवायमेसन्ति // 13 // संघाडीयो पवेसिरसामो एहा य समादहमाणा / पिहिया च सक्खामो अइदुक्खे हिमगसफासा // 14 // तंसि भगवं अपडिन्ने अहे विगडे अहियासए / दविए निक्खम्म एगया रात्रो ठाइए भगवं समियाए // 15 // एस विही अणुक्कन्तो माहोगा मइमया / बहुसो अपडिगणोणा भगवया एवं रीयन्ति // 16 // तिबेमि। // इति द्वितीयोद्देशकः 6.2 // .. // अध्ययन 9 : उद्देशकः 3 // तणफासे सीयफासे य तेउफासे य दंसमसगे य / अहियासए सया समिए फासाई विरूवरूवाई // 1 // अह दुच्चरलाढमचारी वज्जभूमि च सुब्भभूमित्र / पंतं सिज्ज सेविंसु आसरागाणि चेव पंताणि // 2 // लादेहिं तस्तुवसग्गा बहवे जाणवया लूसिंसु / श्रह लूहदेसिए भत्ते कुक्कुरा तत्थ हिंसिसु निवइंसु // 3 // श्रप्पे जो निवारेइ लूसणए सुणए दसमागो छुन्छुकारिंति श्राहंसु समयां कुक्कुरा दसंतुत्ति // 4 // एलिक्खए जणा (जो) भुज्जो बहवे वज्जभूमि फरसासी / लढि गहाय नालियं समणा तस्थ य विहरिंसु // 5 // एवंपि तत्थ विहरन्ता पुटपुव्वा अहेसि सुणिएहिं / संलुचमाणा सुणएहिं दुच्चराणि तत्थ लादेहिं // 6 // निहाय दराडं पाणेहिं तं कायं वोसज्जमणगारे / श्रह गामकराटए भगवन्ते अहिश्रासए अभिसमिच्चा॥७॥