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________________ 28 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः श्रागइं गई परिन्नाय ॥सू० 169 // अच्चेइ जाइमरणस्स वट्टमग्गं विक्खायरए, सव्वे सरा नियति, तका जत्थ न विज्जइ, मइ तत्थ न गाहिया, श्रोए, अप्पइट्ठाणस्स खेयन्ने, से न दीहे न हस्से न वट्टे न तंसे न चउरंसे न परिमंडले न किराहे न नीले न लोहिए न हालिद्दे न सुकिल्ले न सुरभिगंधे न दुरभिगंधे न तित्ते न कडए न कसाए न अंबिले न महुरे न कक्खडे न मउए न गरुए न लहुए न उरहे न निद्धे न लुवखे न काऊ न रहे न संगे न इत्थी न पुरिसे न अन्नहा, परिन्ने सन्ने उवमा न विज्जए, अरूवी सत्ता अपयस्स पयं नत्थि ।।सू 170 // से न सद्देन रूवे न गंधे न रसे न .. फासे इच्चेव तिबेमि ॥सू० 171 // // इति षष्ठ उद्देशकः / / 5-6 // इति पंचममध्ययनम् // 5 // // 6 // धूताध्ययनं-६ :: उद्देशकः-१ // योबुज्झमाणे इह माणवेसु अाघाइ से नरे, जस्स इमायो जाइयो सव्वो सुपडिलेहियायो भवंति, आघाइ से नाणमणेलिसं, से किट्टइ तेसिं समुट्ठियाणं निक्खित्तदंण्डाणं समाहियाणं पन्नाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं, एवं (अवि) एगे महावीरा विपरिकमंति पासह एगे अवसीयमाणे अणत्तपन्ने से बेमि, से जहावि (सेवि) कुमे हरए विणिविट्ठचित्ते पच्छन्नपलासे उम्मग्गं से नो लहइ भंजगा इव संनिवेसं नो चयंति, एवं (अवि) एगे अणेगरूवेहिं कुलेहिं जाया रूवेहिं सत्ता कलुणं थणंति, नियाणयो ते न लभंति मुक्खं, यह पास तेहिं कुलेहिं यायत्ताए जाया // 172 // गंडी ग्रहया कोढी, रायंसी अवमारियं / काणियं झिमियं चेव, कुणियं खुज्जियं तहा // 1 // उदरिं च पास मूयं च, सूणीयं च गिलासणिं / वेवई पीढसप्पिं च, सिलिवयं महुमहणिं // 2 // सोलस एए रोगा, अक्खाया अणुपुव्वसो। अह णं फुसंति पायंका, फासा य असमंजसा // 3 // मरणं तेसिं संपेहाए उववायं चवणं च नच्चा, परियागं च संपेहाए ॥सू. 173-76 //
SR No.004360
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size16 MB
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