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________________ श्री आचाराङ्गमूत्रम् : श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 1] होइं 3, असमियंति मन्त्रमाणस्स एगया असमिया होइ 1, समियंति मनमागस्स समिया वा असमिया वा समिया होइ उवेहाए 5, ममियति मन्नमाणस्स समिया वा अप्समिया वा असमिया होइ उवेहाए 6, उवेहमाणो अणुवेहमाणं ब्रूया-उवेहाहि समिाए, इच्चेवं तत्थ संधी झोसियो भवइ, से उडियस ठि-स्स गई समणुपासह, इत्थवि बालभावे अपार्ण नो वृदं मिज्जा ॥सू० 163 // तुमंसि नाम सच्चेव ज हुँतवंति मनसि, तुमंसि नाम सब्चेव जं यज्जावेयवति मनसि, तुमंसि नाम सच्चेव ज परियावेयबंति मनमि, एवं जं परिचित्तव्वति मनसि, जं उद्दवेयर्वति मन्नसि, यंजू चेयपडिबुद्धजीवी, तुम्हान हता नवि घायए, अणुसंवेयणमप्पाणणं जं हंतवं नाभिपत्थर ॥सू. 164 // जे पाया से विन्नाया, जे विनाया से थाया, जेण वियाणइ से याया, तं पडुन्न पडिसंखाए, एस यायावाइ समियाए परिवाए वियाहिर तिमि ॥सू० 165 // // इति पंचमोद्देशकः // 5-5 // / अध्ययन-५ : उद्देशकः-६ // यणाणाए एगे सोवट्ठाणा याणाए एगे निस्वट्टाणा, एयं ते मा होउ, एवं कुसलस्स देसणं, तदिवीए तम्मुत्तीए तप्पुरकारे तस्सन्नी तन्निवेसणे वासू० 166 // अभिभूय अद्भक्खू श्रणभिभूए पभू निरालंबणयाए जै महं अबहिमणे, पाएण प्रवायं जाणिज्जा, सहसंमइयाए परवागरणेणं अन्नेसिं या यंलिए सुच्चा ॥सू० १६७निसं नाइवटेज्जा मेहावी सुपडिलेहिया सब्बयो सवप्पणा सम्मं समभिराणाय, इह यारामं परिणाय अल्लीणगुत्तो यारामो परिधए निट्ठियट्टी वारे श्रागमेण सथा परकमे ॥सू० 168 // उठे सोया अहे सोया, तिरियं सोया वियाहिया / एए सोया विअक्खाया, जेहिं सँगति पासह // 2 // पावट्ट तु पेहाए इत्थ विरमिज्ज़ वेयवी, विणइत्तु सोयं निक्खम्म एसमहं अकम्मा जाणइ पासइ पडिलेहाए नावकंखइ इह
SR No.004360
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size16 MB
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