________________ श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 2 ] [ 15 लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता, अकडं करिस्सामित्ति मन्नमाणे, जस्सवि य णं करेइ, अलं बालस्स संगेणं, जे वा से कारइ बाले, न एवं यणगारस्स जायइ त्ति बेमि ॥सू० 15 // // इति पंचमोद्देशकः // 2-5 // // अध्ययनं-२ उद्देशकः-६ // से तं संबुज्झमाणे अायाणीयं समुट्ठाय तम्हा पावकम्मं नेव कुज्जा, न कारवेज्जा ॥सू० 16 // सिया तत्थ एगयरं विष्परामुसइ छसु अन्नयरंमि, कप्पइ सुहट्ठी लालपमाणे, सएण दुक्खेण मुढे विप्परियासमुवेइ, सएण विप्पमाएण पुढो वयं पकुवइ, जंसिमे पाणा पव्वहिया, पडिलेहाए नो निकरणयाए, एस परिन्ना पवुच्चइ, कम्मोवसंती ॥सू० 17 // जे ममाइयमई जहाइ स चयइ माइयं, से हु दिट्ठपहे मुणी जस्स नस्थि ममाइयं, तं परिन्नाय मेहावी विइत्ता लोगं वंता लोगसन्नं से मइमं परिकमिज्जासि त्ति बेमि // नारई सहइ वीरे वीरे न सहइ रति // जम्हा अविमणे वीरे, तम्हा वीरे न रज्जइ // 1 // सू० 18 // सद्द फासे अहियासमाणे, निविंद नंदि इह जीवियस्स / मुणी मोणं समायाय, धुणे कम्म सरीरगं // 2 // पंतं लुहं सेवंति, वीरा संमत्तदंसिणो। एस योहंतरे मुणी, तिन्ने मुत्ते विरए वियाहिए // 3 // ति बेमि ॥सू० 16 // दुव्वसुमुणी अणाणाए, तुच्छए गिलाइ वत्तए, एस वीरे पसंसिए, अच्चेइ लोयसंजोगं, एस नाए पवुचइ ॥सू० 100 // जं दुक्खं पवेइयं इह माणवाणं तरस दुक्खस्स कुसला परिन्नमुदाहरंति, इह कम्मं परिनाय सव्वसो जे अणन्नदंसी से अणन्नारामे, जे अणाणारामे से अणनदंसी, जहा पुराणस्स कथइ तहा तुच्छस्स कथइ, जहा तुच्छस्स कथइ तहा पुराणस्स कथइ ।सू० 101 // अवि य हणे, अणाइयमाणे, इत्थंपि जाण सेयंति नस्थि केयं पुरिसे कंच नए ! एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए, उड्डे अहं तिरियं दिसासु, से सव्वो