________________ 16 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः सवपरिन्नाचारी, न लिप्पइ छणपएण; वीरे, से मेहावि अणुग्घायणखेयन्ने जे य बन्धपमुक्खमन्नेसी कुसले पुण नो बद्धे नो मुक्के ।।सू० 102 // से जं च प्रारंभे जं च नारभे, अणारद्धं च न थारभे, छणं छणं परिगणाय लोगसन्नं च न सचसो ॥सू० 103 // उद्दे सो पासगस्त नत्थि, बाले पुणे निहे कामसमणुन्ने, असमियदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव श्रावटै अणुपरियट्टइ त्ति बेमि ॥सू० 104 // // इति षष्ठोद्देशकः // 2-6 // इति द्वितीय मध्ययनम् // 2 / / ॥३:शीतोष्णीयाध्ययन-३ उद्देशकः-१ // सुत्ता अमुणी सया मुणिणो जागरंति ।।सू० 105 // लोयंसि जाण अहियाय दुक्खं, समयं लोगस्त जाणित्ता, इत्थ सत्थोवरए, जस्सिमे संदा य रूवा य रसा य गंवा य फासा य अभिसमन्नागया भवंति ॥सू. 106 // से प्रायवं नाणवं वेयवं धंमवं बंभवं पनाणेहिं परियाणइ लोयं, मुणीति वुच्चे, धम्मविऊ उज्जू, पावट्टसोए संगमभिजाणइ ॥सू. 107 // सीउसिणचाई से निग्गंथे अरइरइसहे, करुसयं नो वेएइ, जागरे वेरोवरए वीरे एवं दुक्खा पमुक्खसि, जरामच्चुवसोवणिए नरे सययं मूढे धम्म नाभिजाणइ ॥सू० 108 // पासिय पाउरपाणे अप्पमत्तो, परिव्वए मंता य मइम, पास प्रारंभनं दुक्खमिणं ति णचा, माइ पमाइ पुण एइ गर्भ, उवेहमाणो सहरुवेसु उज्जू माराभिसंकी मरणा पमुचइ, अप्पमत्तो कामेहिं, उबरयो पावकम्मेहिं, वीरे धायगुते खेयन्ने, जे पज्जवजायसत्थस्स खेयराणे, से असत्थरस खेयराणे जे असत्थस्त खेयराणे से पज्जवजायसत्थस्स खेयराणे, अकम्मस्स ववहारो न विजइ, कम्मुणा उवाही जायइ; कम्मं च पडिलेहाए ॥सू० 101 // कम्ममूलं च जं छणं, पडिलेहिय सव्वं सामायाय दोहिं अंतेहिं अदिस्समाणे तं परिनाय मेहावी विइत्ता लोगं वंता लोगसन्नं से मेहावी परिकमिजासि त्ति बेमि ॥सू० 110 // // इति प्रथमोद्देशकः // 3-1 //