________________ 14 ] __ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / प्रथमो विभागः दासीणं, कम्मकराणं, कम्मकरीणं पाएसाए पुढोपहेणाए, सामासाए, पायरासाए, संनिहिसंनिचयो कज्जइ, इहमेगेसिं माणवाणं भोयणाए ।सू० 86 // समुट्ठिए अणगारे ग्रारिए पारियपन्ने पारियदंसी अयंसंधित्ति अदक्खु, से नाइए नाइयावए न समणुजाणइ, सब्बामगंधं परिन्नाय निरामगंधो परिवए ॥सू. 87 // यदिस्समाणे कयविक्कयेसु, से ण किणो, न किणावए, कितन समणुजाणइ, से भिक्खू कालन्ने, बालन्ने, मायन्ने, खेरन्ने, खणयन्ने, विणयन्ने स-समय-पर-समयन्ने, भावन्ने, परिग्गहं अममायमाणे कालाणुहाइ अपडिरणे ॥सू० 88 // दुहयो छेत्ता नियाइ, वत्थं, पडिग्गहं, कंबलं, पायपुंछणं, उग्गहणं च कडासणं एएसु चेव जाणिज्जा ।सू० 86 // लद्धे याहारे यणगारो मायं जाणि(ए)ज्जा, से जहेयं भगवया पवेइयं, लाभुत्ति न मज्जिज्जा, अलाभुत्ति न सोइज्जा, बहुपि लथुन निहे, परिग्गहायो अप्पाणं अवसकिज्जा ॥सू. 10 // अन्नहा णं पासए परिहरिज्जा, एस मग्गे थायरिएहिं पवेइए, जहित्थ कुसले नोवलिंपिज्जासि त्ति बेमि ॥सू० 11 // कामा दुरतिकमा, जीवियं दुष्पडिवूहगं, कामकामी खलु अय पुरिसे, से सोयइ जूरइ तिप्पइ परितप्पइ ।।सू. 12 // श्राययचवखू लोगविपस्सी लोगस्स ग्रहो भागं जाणइ, उर्दु भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ, गडिए लोए अणुपरियट्टमाणे, संधि विइत्ता इह मच्चिएहि, एस वीरे पसंसिए जे बद्धे पडिमोयए, जहा अंतो तहा बाहिं, जहा बाहिं तहा अंतो, अंतो अंतो पुइदेहंतराणि पासइ, पुढोवि सवंताई पंडिए पडिलेहाए ॥सू० 13 // से मइमं परिनाय मा य हु लालं पचासी, मा तेसु तिरिच्छमप्पाण-मावायए, कासंकासे खलु अयं पुरिसे, बहुमाई कडेण मूढे, पुणो तं करेइ लोहं, वेरं वड्डइ अप्पणो, जमिणं परिकहिज्जइ इमस्स चेव पडिवूहणयाए, अमरा य महासडी अट्टमेयं तु पेहाए अपरिगणाए कंदइ ।सू० 14 // से तं जाणह जमहं बेमि, तेइच्छं पंडिए पवयमाणे से इंता छित्ता भित्ता