________________ भी आचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 6 ] ॥सू. 185 // यागयपन्नाणाणं किसा बाहयो भवंति पाणुर य मंसप्लोणिए विस्लेणि कटु परित्राय, एस तिराणे मुत्ते विरए रियाहिए ति वेमि ॥सू० 186 // विरयं भिक्युरीयंत विररायो मियं अरइ तत्थ किं विधारए ?, संधेमाणे समुट्ठिए, जहा से दीवे असंदीणे, एवं से धम्मे यारियपदसिए, ते अणवकंखमाणा पाणे अणइवाएमाणा जइया मेहाविणो पंडिया, एवं तेसि भगवयो अणुटाणे जहा से दियापोए एवं ते सिस्सा दिया य रायो य यणुपुट्वेण वाक्य त्ति बेमि ॥सू. 187] // इति तृतीयोदेशकः / 6.3 / / // अध्ययन --6 : उद्देशकः-४ // एवं ते सिस्मा दिया य रायो य अणुपुव्वेण वाइया तेहिं महावीरेहिं पन्नाणमन्तेहिं तेसिमंतिए पन्नाणमुवलभ हिचा असम फारुसियं समाइयंति, वसित्ता बंभचेरंसि पाणं तं नोत्ति मन्नमाणा प्राचार्य तु सुच्चा निसम्म, ममणुना जीविस्सामो एगे निक्खमंते असंभवंता विडज्झमाणा कामेहि गिद्धा अज्झोववन्ना समाहिमाघायमजोसयंता सत्थारमेव फरसं वयंति सू. 188 // सीलमंता उवसंता संखाए रीयमाणा असीला अणुवयमा. गास्स विझ्या मंदस्स बाल ना ॥सू. 186 // नियट्टमाणा वेगे श्रायरगोयरमाइक्वंति, नाणभट्टा दंसरणलूसिणो // 10 110 // नममाणा वेगे जीवियं विष्परिणामंति पुट्ठा वेगे नियति जीवियस्सेव कारणा, निखंतपि तेसिं दुन्निक्वंतं भवइ, बालवयणिज्जा हु ते नरा, पुणो पुणो जाइं पकप्पिति ग्रहे संभवंता विदायमाणा ग्रहमंसीति विउकसे उदासीणे फरस वयंति, पलियं 'पकथे अदुवा पकथे यतहेहिं तं वा मेहावी जाणिज्जा धम्मं ॥सू. 111 // अहम्मट्ठी तुमंसि नाम बाले प्रारंभट्ठी अणुवरमाणे हण पाणे घायमाणे हणयो यावि समणुजाणमाणे घोरे धम्मे, उदीरिए उवेहइ णं अणाणाए एस विसन्ने विद्दे विवाहिए त्ति बेमि ॥सू. 192 // किमगोगा भो ! जगोण करिस्मामित्ति