________________ श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् / श्रुतस्कंधः 2 चू० 4 अध्ययनं 1 (25) ] // चतुर्थ चूला-विमुक्त्यध्ययनं // श्रणिचमावासमुर्विति जंतुणो, पलोयए सुचमिणं अणुत्तरं / उविसिरे विन्नु अगारबंधणं, अभीरु प्रारंभपरिग्गहं कर // 1 // तहागयं भिक्खुमगांतसंजयं, अणेलिसं विन्नु चरंतमेसणं / तुदंति वायाहि अभिहवं नरा, सरेहिं संगामगयं क कुंजरं // 2 // तहप्पगारेहिं जणेहिं हीलिए, ससद्दफासा फरुसा उइरिया / तितिक्खए नाणी अदुट्टचेयसा गिरिव्य वारण न संपवेयए // 3 // उवेहमामे कुसलेहिं संवंसे, अकंतदुक्खी तप्तथावरा दुही / अलूसए सबसहे महामुणी, तहा हि से सुस्समणे समाहिए // 4 // विऊनए धम्मपयं अणुत्तरं, विणीयतराहस्स मुणिस्स झायो। समाहियस्सऽग्गिसिहा व तेयसा, तवो य पन्ना यजसो य वड्डइ॥५॥ दिसोदिसंऽणंतजिणेण ताइणा, महव्वया खेमपया पवेइया / महागुरू निस्सयरा उइरिया, तमेव तेउत्तिदिसं पगासगा // 6 // सिएहिं भिक्खू असिए परिव्वए, असजमित्थीसु चइज पूयणं / अणिस्सियो लोगमिणं तहा परं, न मिजइ कामगुणेहिं पंडिए॥७॥ तहा विमुकस्स परिनचारिणो, धिइमो दुक्खखमस्स भिक्खुणो। विसुज्झइ जंसि मलं पुरेकडं, समीरियं रुप्पमलं व जोइणा // 8 // से हु परिनासमयंमि वट्टइ, निराससे उवरय मेहुणा चरे / भुयंगमे जुन्नतयं जहा चए. विमुच्चा से दुहसिज्ज माहणे // 6 // जमाहु श्रोहं सलिलं अपारयं, महासमुदं व भुयाहि दुत्तरं। अहे य णं परिजाणाहि पंडिए, से हु मुणी अंतकडेत्ति वुच्चइ॥१०॥