________________ 10] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः। प्रथमो विभागः जहा हि बद्धं इह माणवेहिं, जहा य तेसिं तु विमुक्खयाहिए। अहा तहा बंध विमुक्ख जे विऊ, से हु मुणी अंतकडेत्ति वुच्चइ // 11 // इममि लोए परए य दोसुवि, न विजइ बंधण जस्त किंचि वि / से हु निरालंबणमप्पइट्ठिए, कलंकली भावपहं विमुच्चइ // 12 // तिबेमि // इति चतुर्थ-चूला-विमुक्त्यध्ययनम् ॥श्रु०२--०४- मूलतः--२५ // इति दितीय-श्रुतस्कन्धः // 2 // // इति श्रीमदाचारांग-सूत्रम् // // ग्रंथाग्रं-२५५४ //