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________________ श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् // श्रुतस्कंधः 2 चू० 3 अध्ययनं 1 (24) ] [135 भावणा-लोभं परियाणइ से निग्गंथे नो अलोभणए सिया, केवली ब्रूयालोभपते लोभी समावइजा मोसं वयणाए, लोभ परियाणइ से निग्गंथे नो य लोभणए सियत्ति तच्चा भावणा 3 // ग्रहावरा चउत्था भावणा-भयं परिजाणइ से निग्गंथे नो भयभीरुए सिया, केवली बूया-भयपत्ते भीरूसमावइजा मोसं वयणाए, भयं परिजाणइ से निग्गंथे नो भयभीरुए सिया वउत्था भावणा / ग्रहावरा पंचमी भावणा-हासं परियाणइ से निग्गंथे नो य हासणए सिया, केवली ब्रूया-हासपत्ते हासी समावइजा मोसं वयणाए, हासे परियाणइ से निग्गंथे नो हासणए सियत्ति पंचमी भावणा 5-27 / एतावता दोच्चे महव्वए सम्म कारण फासिए जाव आणाए श्राराहिए यावि भवइ दुञ्चे भंते महब्बए 28 ग्रहावरं तच्चं भंते ! महव्वयं पच्चक्खामि सव्वं अदिन्नादाणं, से गामे वा नगरे वा रन्ने वा अप्पं वा बहु वा अणु वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा नेव सयं अदिन्नं गिरिहज्जा नेवन्नेहिं दिन्नं गिराहाविजा दिन्नं अन्नपि गिराहतं न समणुजाणिजा जावज्जीवाए जाव वोसिरामि 24 / तस्सिमायो पंच भावणायो भवंति, तत्थिमा पढमा भावणा-अणुवीइ मिउग्गहं जाइ से निग्गंथे नो अणणुवीइ मिउग्गहं जाइ से निग्गंथे, केवली ब्रूया-अणणुवीइ मिउग्गहं जाइ निग्गंथे, अदिन्नं गिगहेजा, अणुवीइ मिउग्गहं जाइ से निग्गंथे नो अणणुवीइ मिउग्गहं जाइत्ति पढमा भावणा 1 / श्रहावरा दुच्चा भावणा-अणुन्नविय पाणभोयणभोइ से निग्गंथे नो अणणुनविय पाणभोयणभोइ, केवली ब्रूया अणणुनविय पाणभोयणभोइ से निग्गंथे अदिन्नं भुजिजा, तम्हा अणुनविय पाणभोयणभोइ से निग्गंथे नो अणणुनविय पाणभोयणभोइत्ति दुचा भावणा 2 / ग्रहावरा तच्चा भावणा-निग्गंथेणं उग्गहसि उग्गहियंसि एतावताव उग्गहणसीलए सिया, केवली बूया-निग्गंथेणं उग्गर्हसि अणुग्गहियंसि एतावता अणुग्गहणसीले अदिन्नं योगिरिह
SR No.004360
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size16 MB
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