________________ 4] दुवा विभमा अदुवा अदिनादाणवी पासा, पुतण उदयजीवा विया जीवा [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः पूयणाए जाइमरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेउं से सयमेव उदयसत्थं समारंभति, अराणेहिं वा उदयसत्यं समारंभावेति, अराणे उदयसत्थं समारंभते समणुजाणति। तं से अहियाए, तं से अबोहीए, से तं संबुझमाणे पायाणीय समुट्ठाय सोचा भगवयो अणगाराणं अंतिए इहमेगेसिं णायं भवति-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए, इचत्थं गड्डिए लोए जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदयकम्मसमारंभेणं उदयसत्थं समारंभमाणे अराणे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ / से बेमि संति पाणा उदयनिस्सया जीवा अणेगे ॥सू० 23 // इहं च खलु भो ! अणगाराणं उदयजीवा वियाहिया ॥सू० 24 // सत्यं चेत्थ अणवीइ पासा, पुढो सत्यं (पास) पवेइयं ॥सू० 25 // अदुवा अदिनादाणं ॥सू० 26 // कप्पइणे कप्पइ णे पाउं, अदुवा विभूसाए ।सू० 27 // पुढो सत्थेहिं विउट्टन्ति ।।सू० 28 // एत्थावि तेसिं नो निकरणाए ॥सू० 26 // एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेए प्रारंभा अपरिगणाया भवंति, एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते प्रारंभा परिराणाया भवंति, तं परिगणाय मेहावी णेव सयं उदयसत्यं समारम्भेजा, नेवराणेहिं उदयसत्थं समारंभावेजा, उदयसत्थं समारंभंतेऽवि श्ररणे ण समणुजाणेजा, जस्सेते उदयसत्थसमारंभा परिराणाया भवंति से हु मुणी परिगणातकम्मे त्ति बेमि ॥सू० 30 // // इति तृतीयोद्देशकः / / 1-3 // // अध्ययनं-१ उद्देशकः 4 // से बेमि णेव सयं लोग अभाइक्खेजा व अत्ताणं अब्भाइक्खेजा, जे लोयं अन्भाइक्खइ से अत्ताणं अभाइक्खइ जे अत्ताणं अभाइक्खइ से लोय अभाइक्खइ ॥सू० 31 // जे दीहलोगसत्थस्स खेयराणे से असत्थस्स खेयरणे, जे असत्थस्स खेयराणे से दीहलोगसत्थस्स खेयरणे ॥सू० 32 // वीरेहिं एवं अभिभूय दिठ, संजएहिं सया जत्तेहिं सया अप्पमत्तेहिं ॥सू० 33 // जे पमत्ते