________________ [3 श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुस्किंधः 1 अध्ययनं 1 ] उरमभे (2) अप्पेगे हिययमन्भे (2) यप्पेगे थणमब्भे (2) अप्पेगे खंधमन्भे (2) अप्पेगे बाहुमभे (2) अप्पेगे हत्थमन्भे (2) अप्पेगे अंगुलिमन्भे (2) अप्पेगे णहमम्मे (2) अप्पेगे गीवमन्भे (2) अप्पेगे हणुममे (2) अप्पेगे होट्टमभे (2) अप्पेगे दंतमन्भे (2) अप्पेगे जीभमभे (2) अप्पेगे तालुमब्भे (2) यप्पेगे गलमम्मे (2) अप्पेगे गंडमभे (2) अप्पेगे कराणमन्भे (2) अप्पेगे णासमभे (2) अप्पेगे अच्छिमन्भे (2) अप्पेगे भमुहमभे (2) अप्पेगे णिडालम भे (2) अप्पेगे सीसमन्भे (2) अप्पेगे संपमारए अप्पेगे उद्दवए, इत्थं साथं समारंभमाणस्स इच्चेते ग्रारंभा अपरिगणाता भवंति ॥सू. 16 // एत्थ सत्थं असमारभमाणस इच्चेते यारंभा परिगणता भांति, ते परिरणाय मेहावी नेव सयं पुढवीसत्थं समारंभेजा, गोवराणेहिं पुढविसत्थं समारंभावेजा, गणेवराणे पुढविसत्थं समारंभंतो समगुजाणेजा, जस्सेते पुढविकम्मसमारंभा परिगणाता भवंति, से हु मुणी परिगणातकम्मे त्ति बेमि ।।सू. 17 // // इति द्वितीय उद्देशकः // 1-2 // अध्ययनं-१ उद्देशकः 3 से बेमि जहा अणगारे उज्जुकडे नियायपडिवगणे (निकायपडिबन्ने) यमायं कुब्वमाणे वियाहिए ॥सू० 18 // जाए सद्धाए निक्खंतो तमेव अगुपालिजा, वियहित्ता विसोत्तियं (विजहिता पुत्रसंजोय) ॥सू० 11 // पणया वीरा महावीहिं ॥सू० 20 // लोग व ग्राणाए अभिसमेचा अकुयोभयं ।।सू० 21 // से बेमि, णेव सयं लोगं अभाइक्खिज्जा, णेव यत्ताणं यभाइक्खिजा, जे लोयं अभाइक्खइ, से अत्ताणं अभाइक्खइ, जे अत्ताणं अभाइक्खइसे लोयं अभाइक्खइ ॥सू० 22 // लज्जमाणा पुढो पास; यणगारा मो त्ति एगे पश्यमाणा जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदयकम्मसमारंभेणं उदयसत्थं समारंभमाणे अराणे योगरूवे पाणे विहिंसइ / तत्थ खलु भगवता परिगणा पवेदिता। इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणण