________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // 7 // णच्चा णं से महावीरे नोऽविय पावगं सयमकासी / अन्नेहिं वा ण कारित्था कीरतपि नाणुजाणित्था॥ .. ___ गाम पविसे नगरं वा घासमेसे कर्ड परट्टाए / सुविसुद्धमेसिया भगवं वायतजोगयाए सेवित्था // 1 // अदु वायसा दिगिछत्ता जे अन्ने रससिणो सत्ता / घासेसणाए चिठति सययं निवइए य पेहाए // 10 // अदुवा माहणं च समणं वा गामपिण्डोलगं च अतिहिं वा / सोवागमूसियारि वा कुकुरं वावि विट्ठियं पुरयो // 11 // वित्तिच्छेयं वज्जन्तो तेसिमप्पत्तियं परिहरन्तो / मन्दं परकमे भगवं अहिंसमाणो घासमेसित्था // 12 // अवि सूइयं वा सुक्कं वा सीयं पिंड पुराणकुम्मासं। अदु बुक्कसं पुलागं वा लद्धे पिंडे अलद्धे दविए // 13 // अवि झाइ से महावीरे पासणत्थे अकुक्कुए माणं / उड्डे अहे तिरियं च पेहमाणे समाहिमपडिन्ने // 14 // अकसाइ विगयगेही य सद्दरूवेसु अमुच्छिए भाइ / छउमत्थोऽवि परकममाणो न पमायं सइंपि कुवित्था // 15 // सपमेव अभिसमागम्म अायतजोगमायसोहीए। अभिनिव्वुडे अमाइल्ले श्रावकहं भगवं समियासी // 16 // एस विही अणुकतो, माहणेण मइमया / बहुसो अपडिन्नेण, भगवया एवं रीयन्ति // 17 // तिबेमि // इति चतुर्थ उद्देशकः // 1-4 // इति नवममध्ययनम् // 6 // // प्रथमो ब्रह्मचर्य-श्रुतस्कंधः समाप्तः //