________________ 20 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः त्तव्वा, न परियावेयव्वा, न उद्दवेयव्वा, एस धम्मे शुद्धे निइए समिच लोयं खेयराणेहिं पवेइए, तं जहा-उट्ठिएसु वा, अणुट्टिएसु वा, उवट्ठिएसु वा, अणुवट्ठिएसु वा, उवरयदंडेसु वा, अणुवरयदंडेसु वा, सोवहिएसु वा, अणोवहिएसु वा, संजोगरएसु वा, असंजोगरएसु वा, तच्चं चेयं तहा चेयं अस्सि चेयं पवुच्चइ ॥सू. 126 // तं श्राइत्तु न निहे न निक्खिवे जाणित्तु धम्मं जहा तहा दिठेहिं निव्वेयंगच्छिज्जा, नो लोगस्सेसणं चरे॥सू० 127 // जस्स नत्थि इमा जाइ अण्णा तस्स कयो सिया ?, दिटुं सुयं मयं विराणायं जं एवं परिकहिजइ, समेमाणा पलेमाणा पुणो पुणो जाई पकप्पति ॥सू. 128 // ग्रहो अरायो य जयमाणे धीरे सया भागयपराणाणे पमत्ते बहिया पास, अप्पमते सया परिकमिज्जासि त्ति बेमि ॥सू. 126 // // इति प्रथमोद्देशकः // 4-1 // // अध्ययनं-४ : उद्देशकः--२॥ जे यासवा ते परिस्सवा, जे परिस्सवा ते पासवा, जे अणासवा ते अपरिस्सवा, जे अपरिस्सवा ते अणासवा, एए पए संबुज्झमाणे लोयं च याणाए अभिसमिचा पुढो पवेइयं ।।सू० 130 // श्राघाइ नाणी इह माणवाणं संसारपडिवराणाणं संबुज्झमाणाणं (अाघाइ धम्म खलु से जीवाणं, तं जहा संसारपडिवन्नाणं माणुसभवत्थाणं प्रारंभविणईणं दुक्खुव्वेअसुहेसगाणं धम्मसवणगवेसयाणं सुस्सुसमाणाणं पडिपुच्छमाणाणं) विनाणपत्ताणं, अट्टावि संता अदुवा पमत्ता अहा सच्चमिणं तिबेमि, नाणागमो मच्चुमुहरस अत्थि, इच्छा पणीया वंका निकेया कालगहिया निचयनिविट्ठा पुढो पुढो जाई पकप्पयंति (एत्थ मोहे पुणो पुणो) ॥सू. 131 // इहमेगेसिं तत्थ तत्थ संथवो भवइ अहोववाइए फासे पडिसवेयंति, चिट्ट कम्मेहिं कूरेहिं चिट्ठ परिचिट्टइ, अचिट्ठ कूरेहिं कम्मेहिं नो चिट्ठ परिचिट्ठइ, एगे वयंति अदुवावि नाणी, नाणी वयंति अदुवावि एगे ॥सू. 132 // अवंती