________________ श्री आचाराङ्गसूत्रम् : श्रुतस्कंधः 1 अध्ययन 6 ] [41 गन्येहि विवित्तेहिं, याउकालस्स पारए पग्गहियतरग चेय, दवियस्म वियाणयो // 11 // अयं से अवरे धम्मे, नायपुत्तेण साहिए / श्रायवज्ज पडोयार, विजहिज्जा तिहा तिहा // 12 // हरिएसु न निवज्जिज्जा, थंडिलं मुणिया सए / विप्रोसिज्ज अणाहारो, पुट्टो तत्थहियासए // 13 // इन्दिएहिं गिलायन्तो, सभियं श्राहरे मुणी / तहावि से अगरिहे, अचले जे समाहिए // 14 // अभिक्कमे पडिकमे, संकुचए पसारए / कायसाहारणट्ठार, इथं वावि अचेयणो // 15 // परिकमे परिकिलन्ते, अदुवा चिटठे ग्रहायए। ठाणे ण परिकिलन्ते, निसीइजा य अंतसो // 16 // श्रासीणेऽणेलिसं मरणं, इन्दियाणि समीरए / कोलावासं समासज्ज वितहं प्रउरे सए // 17 // जया वज समुप्पज्जे, न तत्थ अवलम्बए; तउ उकसे अप्पाणं, फासे तत्थ हियासए // 18 // अयं चाययतरे सिया, जो एवमणुपालए सव्वगायनिरोहेवि, ठाणायो नवि उब्भमे // 19 // श्रयं से उत्तमे धम्मे, पुव्वट्ठाणस्स पग्गहे / अचिरं पडिलेहिता, विहरे चिट्ठ माहणे // 20 // श्रचित्तं तु समासज्ज, गवए तत्थ अप्पगं / वोसिरे सबसो कायं, न मे देहे परीसहा, // 21 // जावज्जीवं परीसहा, उवसग्गा इति संखया संबुडे देह भेयाए, इय पन्नेऽहियासए // 22 // भेउरेसु न रज्जिज्जा, कामेसु बहुतरेसुवि (बहुलेसुवि) इच्छा लोभं न सेविज्जा, धुववन्नं सपेहिया // 23 // सासएहिं निमन्तिज्जा, दिव्वमायं न सदहे / तं पडिबुझ माहणे, सव्वं नूमं विहूणिया // 2 // सब्बठेहिं अमुच्छिए, अाउकालस्स पारए / तितिक्खं परमं नचा, विमोहन्नयरं हियं 25|| तिबेमि // ॥इति अष्टमोद्देशकः 8-8 // इति अष्टममध्ययनम् ||8|| // उपधानश्रुताख्यमध्ययनं 6 : उद्देशकः 1 // अहासुयं वइस्सामि जहा से समणे भगवं उट्ठाए। संखाए तंसि हेमते श्रहुणो पव्वइए रीइत्था // 1 // णो चेविमेण वत्थेण पिहिस्सामि तसि हेमं.