SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 40 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः गिलामि खलु अहं इमम्मि समए इमं सरीरगं अणुपुब्वेणं परिवहित्तए, से अणुपुवेणं याहारं संवट्टिजा (2) कसाए पयणुए किचा समाहियच्चे फलगावयट्ठी उट्ठाय भिक्खू अभिनिव्वुडच्चे अणुपविसित्ता गाम वा नगरं वा जाव रायहाणिं वा तणाई जाइजा जाव सन्यरिजा, इत्थवि समए कार्य च जोगं च ईरियं च पञ्चक्खाइजा, तं सच्चं सचावाई योएतिन्ने छिन्नकहकहे आईय? अणाईए चिचाणं भेउरं कायं संविहुणिय विरुवरूवे परीसहोवसग्गे अस्सिं विस्संमणाए भेरवमणुचिन्ने तत्थवि तस्स कालपरियाए, सेवि तत्थ वियन्तिकारए, इच्चेयं विमोहाययणां हियं सुहं खमं निस्सेसं पाणुगामियं तिबेमि ॥सू० 226 // // इति सप्तमोद्देशकः / / 8-7 // // अध्ययनं-८ : उद्देशकः-८ // अणुपुब्वेण विमोहाई, जाइं धीरा समासज वसुमन्तो मइमन्तो, सव्वं नचा अणेलिसं // 1 // दुविहंपि विइत्ता गां, बुद्धा धम्मरस पारगा। अणुपुव्वीइ संखाए, प्रारंभात्रो (य) (कम्मुणा उ) तिउट्टइ // 2 // कसाए पयगू किचा, अप्पाहारे तितिक्खए / श्रह मिक्व गिलाइजा, याहारस्सेव अन्तियं // 3 // जीवियं नाभिकंखिज्जा, मरणां नोवि पत्थए; दुहयोऽवि न सजिज्जा, जिवीए मरणे तहा // 4 // मज्झत्यो निज्जरापेही, समाहिमणुपालए अन्तो बहिं विऊस्सिज्ज, अज्झत्थं सुद्धमेसए // 5 // जं किंचुवकमं जाणे, थाउखेमस्समप्पणो / तस्सेव अन्तरद्धाए, खिप्पं सिविखज्ज पंडिए // 6 // गामे वा अदुवा रराणे, थंडिलं पडिलेहिया / अप्पपाणां तु विनाय, तणाई संथरे मुणी // 7 // श्रणाहारो तुयट्टिज्जा, पुट्ठो तत्थाहियासए। नाइवेलं उवचरे, माणुस्सेहि विपुटुवं // 8 // संसप्पगा य जे पाणा, जे य उड्डमहाचरा। भुजन्ति मंससोणिय, न छणे न पमज्जए // // पाणा देहं विहिंसन्ति, ठाणायो नवि उम्भमे ग्रासवेहिं विवित्तेहिं, तिप्पमाणोहियासए // 10 //
SR No.004360
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy