________________ [ 11 श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 2 ] // अध्ययनं-२ : उद्देशकः-२॥ अरई अउट्टे स मेहावी, खणंसि मुक्के ॥सू० 72 // श्रणाणाय पुट्ठावि एगे नियति, मंदा मोहेण पाउडा, अपरिग्गहा भविस्सामो समुट्ठाय लद्रे कामे अभिगाहइ, यणाणाए मुणिणो पडिलेहंति, इत्थ मोहे पुणो पुणो सन्ना नो हब्बाए नो पाराए ॥सू० 73 // विमुत्ता हु ते जणा जे जणा पारगामिणो लोभमलोभेण दुगुछमाणे लद्धे कामे नाभिगाहइ ॥सू० 74 // विणावि लोभं निक्खम्म एस अकम्मे जाणइ पासइ पडिलेहाए नावकंखड, एस यणगारित्ति पवुच्चइ, अहो य रायो परितप्पमाणे कालाकालसमुट्ठाई संजोगट्ठी अट्ठालोभी बालुपे सहकारे विणिविठ्ठचिते, इस्थ सत्थे पुणो पुणो से श्रायबले, से नाइबले, से सयणवले, से मित्तबले, से पिञ्चबले, से देवबले, से रायवले, से चोरबले, से अतिहिबले, से किविणवले, से समणवले इच्चेएहिं विरूवरूवेहिं कज्जेहिं दंडसमायाणं संपेहाए भया कज्जइ, पावमुक्खुत्ति मन्नमाणे अदुवा यासंसाए ॥सू० 75 // तं परिगणाय मेहावी नेव सयं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभिजा, णेव अन्नं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभाविजा, एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभंतंपि अन्नं न समणुजाणिजा, एस मग्गे पारिएहिं पवेइए, जहेत्थ कुसले नोवलिंपिजासि त्ति बेमि ॥सू० 76 // // इति द्वितीय उद्देशकः // 2-2 // // अध्ययनं-२ उद्देशकः-३ // से असई उच्चागोए असई नीयागोए, नो हीणे नो अइरित्ते (एगमेगे खलु जीवे अईअदाए असइ उच्चागोए असइ नीयागोए, कंडगट्ठयाए नो हीणे नो अइरित्ते) नोऽपीहए, इय संखाय को गोयावाइ को माणावाइ ? कंसि वा एगे गिज्मा, तम्हा नो हरिसे नो कुप्पे, भूएहिं जाण पडिलेह सायं ॥सू० 77 // समिए एयाणुपस्सी (पुरिसे णं खलु दुक्खुव्वेअसुहेसए)