________________ 18 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // अध्ययनं-३ : उद्देशकः-३ // संधि लोयस्स जाणित्ता, बाययो बहिया पास, तम्हा न हंता, न वि घायए, जमिणं अन्नमन्नवितिगिच्छाए पडिलेहाए न करेइ पावं कम्म, किं तत्थ मुणी कारणं सिया ? ॥सू० 115 // समयं तत्थुवेहाए अप्पाणं विप्पसायए- अणनपरमं नाणी, नोपमाए कयाइ वि / प्रायगुते सया वीरे, जायामायाइ जावए // 1 // विरागं रूवहिं गच्छिज्जा महया खुडुएहि य, थागई गई परिराणाय दोहिवि अतेहिं अदिरसमाणेहिं से न लिज्जइ, न भिज्जइ, न डझइ, न हमइ कंचणं सब्बलोए ॥सू. 116 // अवरेण पुचि न सरंति एगे, किमस्स तीयं किं वाऽऽगमिस्सं / भासंति एगे इह माणवायो, जमस्स तीयं तमागमिस्सं // 1 // (अवरेणपुब् िकिह से अतीतं, किह श्रागमिस्सं न सरंति एगे। श्रासंति एगे इह माणवायो, नह से अईयं तह ग्रागमिस्सं // 1) नाईयमट्ठन य श्रागमिस्सं, अट्ठ नियच्छन्ति तहागयाउ / विहुयकप्पे एयाणुपस्सी, निझोसइत्ता खवगे महेसी // 2 // का अरइ के याणंदे ?, इत्थंपि अग्गहे चरे, सव्वं हासं परिचज पालीणगुत्तो परिव्वए, पुरिसा ! तुममेव तुम मित्तं, किं बहिया मित्तमिच्छसि ? सू० 117 // जं जाणिज्जा उच्चालइयं तं जाणिजा दूरालइयं, जं जाणिज्जा दूरालइयं तं जाणिज्जा उच्चालइयं, पुरिसा ! अत्ताणमेवं अभिणिगिझ एवं दुक्खा पमुच्चसि, पुरिसा ! सचमेव समभिजाणाहि, सच्चस्स याणाए से उवट्ठिए मेहावी मारं तरइ, सहियो धम्ममायाय सेयं समणुपस्सइ ।सू० 118 // दुहयो जीविअस्स परिवंदणमाणणप्यणाए जसि एगे पमायंति॥सू०१११॥ सहियो दुक्खमत्ताए पुट्ठो नो झझाए, पासिमं दविए लोकालोकपवंचायो मुचइ त्ति बेमि ॥सू. 120 // // इति तृतीयोद्देशकः // 3-3 //