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ॐ अर्हते नमः श्री आत्म-वल्लभ-सद्गुरुभ्यो नमः कलिकालसर्वज्ञ-श्रीहेमचन्द्राचार्य-प्रणीत
योगशास्त्र
स्वोपजविवरण सहित
प्रथम प्रकाश
नमो दुर्वाररागादि-वैरिवार-निवारिणे । अर्हते योगिनाथाय, महावोराय तायिने ॥१॥
अर्थ अत्यन्त कठिनता से दूर किये जा सकने वाले रागद्वेषादि शत्रुगण का निवारण करने वाले अर्हन्त, योगियों के स्वामी और जगत् के जीवों की रक्षा करने वाले श्री श्रमण भगवान महावीर को मेरा नमस्कार हो।
प्रणम्य सिद्धाद्भुत-योगसम्पदे, श्रीवोरनाथाय, विमुक्तिशालिने । स्वयोग - शास्त्रार्थ-विशेषनिर्णयो, भव्यावबोधाय मया विधास्यते ॥१॥
अर्थ सिद्ध अदभुत योग-सम्पदाओं से युक्त एवं रागादि दोषों से विमुक्त श्रीमहावीर स्वामी को नमस्कार करके भन्यजीवों को बोध देने के हेतु स्वरचित योगशास्त्र का विशेष अर्थो से युक्त विवरण (व्याख्या) प्रस्तुत करूंगा।
आशय कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्राचार्य इस योगशास्त्र की रचना करके इसी पर स्वोपज्ञ व्याख्या करने का प्रयोजन मंगलाचरण के साथ बताते हैं-'स्वयोगशास्त्रार्थ-विशेषनिर्णयो भव्यावबोधाय मया विधास्यते ; अर्थात्, मैं अपने द्वारा रचित योगशास्त्र के वास्तविक अर्थ का बोध भव्य जीवों को देने के