Book Title: Yogasara
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 8
________________ पद्मभूषण आचार्य बलदेव उपाध्याय का आशीर्वचन डॉ० कमलेशकुमार जैन द्वारा सम्पादित एवं अनूदित योगसार के संस्करण को देखकर मुझे अत्यन्त हर्ष हुआ। लेखक ने इसे तैयार करने में बड़ा परिश्रम किया है और इस आध्यात्मिक ग्रन्थ के रहस्यों को समझाने में आपने अभी तक अप्रकाशित प्राचीन टीका को आधार मानकर जो कार्य किया है, वह नितान्त महत्त्वपूर्ण, उपादेय तथा प्रामाणिक है । जैन साहित्य का यह मूल ग्रन्थ अपनी गम्भीर विचारधारा के कारण विद्वानों तथा अध्यात्म-रसिकों में विशेष प्रख्यात रहा है। यह ग्रन्थ गम्भीर अर्थ का विवेचन करता है और ऐसे सिद्धान्तों का प्रतिपादन करता है, जो मौलिक हैं तथा अपनी गम्भीरता के कारण जैन पण्डितों का ध्यान सदा आकृष्ट करते रहे हैं। ऐसे अनुपम ग्रन्थ का यह सुलभ तथा प्रामाणिक विवेचन जिज्ञासुओं की ज्ञान-पिपासा सर्वथा तथा सर्वदा तृप्त करता रहेगा, मुझे पूरी आशा है। मैं लेखक से आग्रह करता हूँ कि इसी तरह की सुन्दर रचनायें प्रस्तुतकर ये जैन साहित्य के भण्डार को भरते रहेंगे । विद्या विलास रवीन्द्रपुरी, वाराणसी २१ दिसम्बर, ८७ बलदेव उपाध्याय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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