________________
४८
विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम.
दाम० ॥२॥ बडी पूजा तारक केरी, कीजे रागे गुंरु रे ॥ शुद्ध जाव घरी पूजत जिनवर, बूटत कर्म प्रचंग रे | दा०३ ॥ काव्यं ॥ उपेंद्रवज्ञावृत्तम् ॥
॥ तैरेव पुष्पैर्विरचय्य मालां, सौरभ्यलोन मिभृंगमालां ॥ श्रारोपयन्नाकपतिर्जिनांगे, पूजां पटिष्ठीं कुरुते स्म षष्ठीं ॥ १ ॥ इति पुष्पमालपूजा षष्ठी ॥ ६॥ ॥ अथ सप्तम पंचवर्णफूलपूजा प्रारंभः ॥
॥ पंच वर्णनां फूलनी, पूजा सातमी एड् ॥ पंचम ज्ञान प्रकाशपर, करे प्रमादनो बेह ॥ १ ॥ ए पूजा करतां थका, जावो जावना एम ॥ वर्णादिक गुण रहित तुं, अलख अवर्णी खेम ॥ २ ॥ वर्णादिक पुजलदशा, तेशुं तुज नहीं मेल ॥ तुं रत्नत्रयमयी सदा, जिन्न यथा जल तेल ॥ ३ ॥ चिदानंदघन श्रातमा, पूर्णानंद रूप ॥ शुद्धतम सत्तारसी, दर्शन ज्ञान स्वरूप ॥ ४ ॥
॥ राग सामेरी ॥
॥करूं पूजा करूं पूजा, नमो जिनराय, पंचवर्ण आंगी रचो, विविध रंग रंगेहिं जेलो, अति अनुपम चि
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org