Book Title: Vividh Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 434
________________ ४२६ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. धरी अधिक आनंद, अवलोकता जिनचंद ॥ १० ॥ ढाल ॥ श्री जिनचंदने सुरपति सवि नवरावता ए ॥ निज निज जन्म सुकृतारथ जावता ए ॥ ११ ॥ चाल ॥ हां रे जावता जन्म प्रमाण, अनिषेक कलश मंमाण | साठ लाख ने एक कोड, शत दोय ने पंचास जोम ॥ १२ ॥ आठ जातिना ते होय, चौसठी सहसा जोय ॥ एी परे नक्ति उदार, करे पूजा विविध प्रकार || १३ || ढाल || विविध प्रकारना करीय शिणगार ए ॥ जरीय जल विमलना विपुल भृंगार ए ॥ १४ ॥ चाल ॥ हां रे भृंगार थाल चंगेरी, सुप्रतिष्ठ प्रमुख सुनेरी ॥ सवि कलश परे मंगाण, जे विविध वस्तु प्रमाण ॥ १५ ॥ रति ने मंगलदीप, जिनराजने समीप ॥ जगवती चूरणी मांदि, अधिकार एह उत्साही ॥ १६ ॥ ढाल ॥ अधिक उत्साह शुं दरख जल जींजता ए ॥ नव नव जांतिशुं नक्किनर की जता ए ॥ १७ ॥ चाल ॥ हां रे कीजता नाटारंज, गाजता गुद्दीर मृदंग ॥ करी करी तिहा कंठताल, चडताल ताल कंसाल ॥ १८ ॥ शंख पणव जुंगल मेरी, ऊल्लरी वीणा नफेरी ॥ एक करे हयदेषा, एक करे गज गुलकार ॥ १५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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