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४६७ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम.
॥अथ शांति जिन श्रारतिः॥ ॥जय जय श्रारति शांति तुमारी,चरणकमलकी में जा बलिहारी॥ जय० ॥१॥ विश्वसेन श्रचिराजीके नंदा, शांतिनाथमुख पूनमचंदा ॥ जय० ॥ ५॥ चालीश धनुष सोवनमय काया, मृगलंबन प्रजुचरण सुहाया ॥ जय०॥३॥ चक्रवर्ती प्रनु पांचमा सोहे, सोलमा जिनवर सुर नर मोहे ॥ जय० ॥४॥ मंगल आरति जोरहिं कीजे, जन्म जन्मनो लाहो लीजे ॥ जय ॥५॥ कर जोमी सेवक गुण गावे, सो नर नारी श्रमरपद पावे ॥ जय० ॥६॥ इति श्रारतिः॥
॥ अथ वीशस्थानक पूजाऽध्यापन विधिः ॥ __॥वीश स्थानकनुं तप मामतां अथवा एक एक उली संपूर्ण थाय ते वारे, अथवा तप न कस्युं होय अने खानाविक नाव नक्तिए पूजा जणाववी होय तो तेनो विधि आ प्रमाणे बेः
॥ दिनशुछिए शुज उत्सवे श्रासन उपर एक पंक्तिए वीश प्रतिमा अलंकार सहित स्थापीए. तेनी आगल वली उपरा उपर त्रण बाजोउ मांडीने, तेनी उपर पंचतीर्थी प्रतिमा स्थापन करीने प्रथम लघु स्नात्र नणावीए. पठी तीर्थकूपादिकनां पवित्र जल
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