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४ए६ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. देवी देव मनायो ॥ फरक नहीं किनहीने कीना हाहाकार मचायो ॥ सु र ॥२॥ रतन चिंतामणि सरिषो साहिब विक्रमपुरमें श्रायो ॥ जैनसंघको कष्ट पूर कर जैजैकार वरतायो ॥ सु० र ॥३॥ महिमा सुन माहेश्वर ब्राह्मण सबही शीश नमायो ॥ जीवनदान करो महाराजा गुरु तब यो फरमायो ॥ सुन र ॥ ४॥ जो तुम समकित व्रतको धारो अवहीं करदं जपायो॥ तहत वचन कर रोग मिटायो आनंद हर्ष बधायो ॥ सु र ॥ ५ ॥ जो कोश श्रावक व्रत नहीं धास्यो पुत्री पुत्र चमायो ॥ साधु पांचसै दीक्षित कीना साधवीयां समुदायो ॥ सु र ॥ ६ ॥ मंत्र कला गुरु अतिशय धारी ऐसो धर्म दीपायो ॥ शहिसार पर किरपा कीनी साचो इलम बतलायो ॥ सु र ॥ ॥ श्लोक ॥ सरलतन्मुलकैरतिनिर्मलैः प्रवरमौक्तिकपुञ्जवउज्ज्वलैः । सकल ॥ ॐ झी श्री ॥ प० अदतान् निर्वपामि ते खाहा ॥६॥
॥दोहा॥ नैवेद्य पूजा सातमी, करो नविक चित्त चाव ॥ गुरुगुण अगणित कुण गिणे, गुरु नवतारण नाव ॥१॥
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