Book Title: Vividh Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 509
________________ दादासाहेबनी पूजा. ५०१ तब मैं जानुं प्रगट्या ततखिण तरण तरी रे ॥ध्व०॥ पुष्पमाल शिर केशर टीका अधर श्वेत पोशाक करी रे॥ध्व०॥४॥ माग माग वर बोले वाणी फरक बतावो गुरु मेघऊरी रे॥ध्व॥ फरक उगायो दोयलाख पर तेरी महिमा नित्त हरी रे ॥ध्व०॥५॥ गैनचंद गोलेगको परतिख दीना दरस फरी रे ॥ ध्व०॥ विक्रमपुरमें थंल तुम्हारा चित्र करावत सुरसुंदरी रे ॥ध्व०॥६॥थानमन्स खूण्यां पर किरपा लखमी लीला सहज वरी रे॥लखमीपति उगमकी साहिब हुंमीकी जुगतान करी रे ॥ध्वः ॥ ७॥ जो उपकार कस्यो तें मेरा दीनी सन्मुख अमृतऊरी रे॥ध्व०॥ तेरी कृपासे सिछि पार जागे जस अरु नाग नरी रे॥ध्व०॥७॥ नूखा जोजन तिसिया पानी नरत हाजरी देव परी रे॥ध्वा बिखम बखत पर सहाय हमारे हिसारकी गरज सरी रे ॥ध्व०॥ ए ॥ श्लोक ॥ मृउमधुरध्वनिकिङ्किणीनादकैर्ध्वज विचित्रितविस्तृतवासकैः ॥ सकल॥शिखरोपरि ध्वजां श्रारोपयामि स्वाहा ॥ दोहा॥जट्टारक पदवी मिली, जीते वादिबूंद ॥ कंठ विराजत सरस्वती, जगमें श्रीजिनचंद ॥ ॥राग आशावरं अथवा धनाश्री ॥ पूजा जग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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