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दादासाहेबनी पूजा. ४एए ॥दोहा॥वस्त्र अतर गुरु पूजना, चोवा चंदन चंपेल ॥ कुश्मन सब सऊन हुए, करे सुरंगा खेल ॥१॥
॥मनमो किमही न बाजे हो कुंथु जिन ॥ ए चाल ॥ लखमी लीला पावे रे सुंदर लखमी लीला पावे ॥ जो गुरु वस्त्र चढावे रे ॥ सुं० ॥ सुजस अत्तर महकावे रे ॥ सुं०॥पुरजन शंाश नमावे रे॥सु०॥ए आंकणी ॥ दरिया बीच जहाज श्रावककी ड्रबन खतरे श्रावे ॥ साचे मन समरे सद्गुरुको दुःखकी टेर सुनावे रे ॥ सुं०॥१॥बाचंता व्याख्यान सूरीश्वर पंखी रूपे थावे ॥ जाय समुझमें ज्याज तिराश फिर पीठा जब आवे रे ॥ सुंग ॥२॥ पूजे संघ थचरज में नरिया गुरु सब बात सुनावे रे ॥ सुं॥ ऐसे दादा दत्त कुशल गुरु परचा प्रगट दिखावे रे ॥सुं॥३॥बो थर गूजरमल श्रावककी दादा कुशल तिरावे ॥सुं०॥ सुख सूरि गुरु समयसुंदरकी ज्याज अलोप दिखावे रे ॥ सुं० ॥४॥ बारासै ग्यारे दत्त सूरि अजमेर अणसण गवे ॥ उपज्या सौधर्मा देवलोके सीमंधर फुरमावे रे ॥ सुं० ॥५॥ इक अवतारी कारज सारी मुक्तिनगरमें जावे रे ॥ सुं॥ कुशल सूरि देराउर नगरे जुवनपति सुर थावे रे ॥
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