Book Title: Vividh Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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५०५ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. सुखकारी सुगुरु तेरी पूजाण ॥ तेरे चरणकमल बलिहारी ॥ सु० ॥ साह सलेमी दिल्लीको बादस्या सुनके शोन तिहारी ॥ नट्ट हरायो चरचा करके नट्टारकपद धारी ॥ सु० ॥१॥ अम्मावसकी पूनम कीनी चंद उगायो नारी ॥ चढके गगन करी है चरचा सूरजसे तपधारी॥सु०॥२॥चौदासे उगणीस सालमें लखनउ नगर मकारी ॥ गोरा फिरंगी टोपीवाला दिलमें यह बात विचारी ॥ सु० ॥३॥ जैन सितंवर देव जो सच्चा पूरे मनसा हमारी ॥ वाणी निकसी राज्य तुम्हारा होवेगा अधिकारी ॥सु०॥४॥ अंधेकी खोली आंख सुरतमें पूजे सब नर नारी ॥ कहां लग गुण बरणुं मैं तेरा तुं ईश्वर जयकारी ॥सु० ॥५॥ जंगणीसे संवत्सर तेपन मगसर मास मजारी ॥ शुकल उज जिनचंद सूरीश्वर खरतरगड आचारी ॥ सु० ॥ ६ ॥ कुशल सूरिके निज संतानी देमकीर्ति मनुहारी॥प्रतिबोध्या जिन दत्री पांचसे जान सहित अणगारी॥सु०॥ ७॥ देम धाम शाखा जब प्रगटा जगमें आनंदकार! ॥ धर्मशाल साधु गुण पूरे कुशल निधान उदारी॥सु०॥७॥ या पूजन करतां सुख आनंद अन्न धन लखमी सारी॥
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