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५०० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. सुं०॥६॥ फागण व दि अम्मावस सीधा पूनम दरश दिखावे रे ॥ सुं० ॥ मणिधारी दिल्ली में पूज्या संकट सुपने नावे रे ॥ सुं० ॥ ७॥ रथी उठी नहीं देख बादसा वांही चरण पधरावे रे ॥ सुं० ॥ वस्त्र अत्तर पूजा सद्गुरुकी इद्धिसार मन नावे रे॥ सुंग ॥ ॥श्लोक ॥अखिलहीरशुर्नवचीरकैःप्रवरप्रावरणैः खलु गन्धतः ॥ सकल ॥ श्री श्री पण वस्त्रं चोवाचन्दनपुष्पसारं निर्वपामि ते स्वाहा ॥ए॥ ॥दोहा॥ध्वजपूजा गुरुराजकी, लहके पवन प्रचार ॥ तीन लोकके शिखर पर, पहुंचे सो नर नार ॥१॥
॥चाल॥जिनगुण गावत सुरसुंदरी रे॥ए चाल॥ ध्वजपूजन कर हरख नरी रे ॥ ध्व०॥ सज सोले शिणगार सहेव्यां श्रीसद्गुरुके छार खरी रे॥ध्व०॥ अपनर रूप सुतन सुक लीनी ठम उम पग ऊणकार करी रे ॥ २० ॥१॥ गावत मंगल देत प्रदक्षिणा धन धन आनंद आज घरी रे ॥ ध्व०॥ निर्धनको लखमी बकसावत पुत्र विना जाके पुत्र करी रे॥ध्वण॥
॥जो जो परतिष परचा देख्या सुनो नविक दिल बीच धरी रे॥ ध्व०॥ फतेमस नडगतिया श्रावक पहली शंका जोरे करी रे ॥ध्व०॥३॥ परतिख देखें
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