Book Title: Vividh Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 506
________________ भएत विविधपूजासंग्रह जाग प्रथम. चिहुं दिश कीरत विस्तरे, पूजन करो सुजान ॥१॥ रथ चढ यमुनंदन आवत है ॥ ए चाल ॥चालो संघ सब पूजनको गुरु समस्या सनमुख श्रावत है रे॥ चा० ॥ ए आंकणी ॥ आनंदपुर पट्टनको राजा गुरु शोना सुन पावत है रे ॥ चा०॥ नेजा निज परधान बुलाने नृप अरदास सुनावत है रे ॥ चा० ॥१॥ लाज जान गुरु नगर पधारे नूपति आय बधावत है रे ॥ चा० ॥ राजकुमरको कुष्ठ मिटायो अचरज तुरत दिखावत है रे॥चा० ॥२॥ दश हजार कुटुंब संग नृपकुं श्रावकधर्म धरावत है रे ॥ चा ॥३॥ दयामूल श्राज्ञा जिनवरकी बारा व्रत उचरावत है रे॥ चा०॥ऐसे चार राज समकित धर खरतर संघ बनावत है रे॥चा॥४॥कुष्ठ जलंधर दयी नगंदर कश्यक लोक जीवावत है रे ॥ चा० ॥ ब्राह्मण क्षत्री अरु माहेश्वर उस वंश पसरावत है रे ॥ चा० ॥ ५॥ तीस हजार एक लख श्रावक महिमा अधिक रचावत है रे ॥ चा० ॥ कहत रामशहिसार गुरुको फलपूजा फल पावत है रे॥ चा॥६॥श्लोक॥पनसमोचसदाफलकर्कटः सुसुखदैः किल श्रीफलचिर्नटैः ॥ सकल ॥ ॐ ही श्री प० फलं निर्वपामि ते स्वाहा ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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