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दादासाहेबनी पूजा.
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मंत्र से उठाय दीन तुं ॥ देखके अचंन रंग दास खासकूं ॥ दा० ॥ ४ ॥ दो० ॥ करत सेव जावपूर तुरकराज जूं ॥ बोडके अजय खान हाजरी जरूं ॥ हा० ॥ ५ ॥ दो० ॥ बीज खीजके पमी प्रतिक्रमणके मूं ॥ हाथ से उठाय पात्र ढांक दीन बूं ॥ ढां ॥ ६ ॥ दो० ॥ दामनी अमोल बोल सिद्धराज तूं ॥ देनं वरदान बोम बंद कीन क्यूं ॥ बं० ॥ ७ ॥ दत्त नाम जपत जाप करत नांह चूं ॥ फेर में पहूंगी नांद बोड दीन फूं ॥ बो० ॥ ८ ॥ दो० ॥ करोगे निहाल आप पाव पलकनुं ॥ रामरुद्धिसार दास चरण बांह लूं ॥ च० ॥ ए ॥ दो० ॥ श्लोक ॥ मलयचन्दन केशरवारिणा निखिलजाड्यरुजातपहारिणा ॥ सकल० ॥ ॐ ॐ श्री श्री जिनदत्त० केशरचन्दनं निर्वपामि ते स्वाहा ॥ २ ॥
॥ दोहा ॥ चंपा चमेली मालती, मरुवा अरु मचकुंद ॥ जो चढे गुरुचरण पर, नित घर होय आनंद ॥ १ ॥
॥ निंद तो गइ वादीला मारी ए चाल - राग मांड- गुरु परतिख सुरतरुरूप सुगुरु सम डूजो तो नहीं ॥ डूजो तो नहीं रे सुमति जन डूजो तो नहीं ॥ गुरु परतिख सुरतरुरूप सुगुरुने पूजो तो सही ॥ ए
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