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दादासाहेबनी पूजा.
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अंबिका बिरुद बखाने गुरु तेरो ॥ ० ॥ तुम युगप्रधान नहीं बाने ॥ गु० ॥ ए कणी ॥ गढ गिरनार बम श्रावक ऐसो नियम चित्त ठाने ॥ युगप्रधान इस युग में कोई देखूं जन्म प्रमाणे ॥ गु० ॥
० ॥ १ ॥ कर उपवास तीन दिन बीते प्रगटी अंबा ज्ञाने || गु० ॥ प्रगट होय करमें लिख दीना सुबरन अक्षर दाने ॥ गु० ॥ ० ॥ २ ॥ या गुणसंयुत र वांचै ताको युगवर जाने ॥ गु० ॥ बम मुलक मुलकमें फिरता सूरि सकल पतवाने ॥ गु० ॥ अं० ॥३॥ श्राया पास तुम्हारे सजुरु कर पसार दिख लाने ॥ ० ॥ वासदेप उन उपर माला चेला बांच सुनाने ॥ ० ॥ ० ॥ ४ ॥ सर्व देव है दास जिनों के मरुधर कल्प प्रमाणे ॥ युगप्रधान जिनदत्त सूरीश्वर त्र्यंबक शीश झुकाने ॥ गु० ॥ ० ॥ ५ ॥ उद्योतन सूरीरे निज हुथ चौरासी ग गने || सो सब तुम्हरी सेवा सारे चौरासी गढ़ माने ॥ गु० ॥ अं० ॥ ६ ॥ जो मिथ्यात्वी तुमको न पूजे सो नहीं तत्र पिठाने ॥ बाहु स्वामी तुम कीर्त्तन कीनी ग्रंथ प्रमाणे ॥ ० ॥ ० ॥ ७ ॥ युगप्रधान परि की एं गिंडिका गणधर पद वृत्ति म्याने ॥ कहे रामद्धिसार गुरुको पूजा
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