Book Title: Vividh Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 495
________________ दादासाहेबनी पूजा. ४७ करणम् ॥ ३ ॥ अथ जलका कलश लेके स्नानकर्ता शुचि होके खडा रहे ॥ ॥अथ स्तुतिप्रारंनः॥ ॥दोहा॥ईश्वर जगचिंतामणि,कर परमेष्ठीध्यान॥ गणधरपद गुण वर्णना, पूजन करो सुजान ॥१॥ सुधर्मा मुनिपति प्रगट, वीर जिनेश्वर पाट॥ मिथ्यामततम हरणको, जव्य दिखावन बाट ॥२॥ सुस्थित सुप्रतिबक गुरु, सूरिमंत्रको जाप ॥ कोटि कीयो जब ध्यान धर, कोटिकगल सुथाप ॥३॥ दश पूर्वी श्रुतकेवली, नये वज्रधर स्वाम ॥ता दिनतें गुरुगडको, वज्रशाख नयो नाम ॥४॥ चंद्र सूरि जये चंछ सम, अतिही बुझिनिधान॥चंडकुली सब जगतमें, पसरो बहु विज्ञान ॥५॥ वईमानके पाट पद, सूरि जिनेश्वर नाश ॥ चैत्यवासिको जीतकर, सुविहित पद प्रकाश ॥ ६॥ अण हिलपुर पाटण सन्ना, लोक मिले तिहां लद ॥खरतर बिरुद सुधानिधि, उर्लन राज समद ॥ ७ ॥ अजयदेव सूरि नये, नव अंग टीकाकार ॥ थंजण पारस प्रगट कर, कुष्ठ मिटावनहार ॥ ॥ श्रीजिनवबन सूरि गुरु, रचना शास्त्र अनेक ॥प्रतिबोघे श्रावक बहुत, ताके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512