Book Title: Vividh Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 488
________________ ४०० विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. श्रांगी, समवसरण इत्यादिक सर्व वस्तु प्रथमथी ठीक करीने राखवी, एथकी पूजामां विघ्न न होय ॥ ए संक्षेप विधि को, विशेष विधि गुरु थकी जाएवो ॥ ॥ अथ श्री नवपदपूजाध्यापन विधिः ॥ ॥ तत्र प्रथम कलशढालनविधिः ॥ चैत्र तथा श्रश्विन मासमां ए पूजार्ज जलाये, ते वारे नव स्नात्रीया करीए. मोटा कलश प्रमुखमांपंचामृतजरी ए. स्थापनामा श्रीफल तथा रोकड नाएं धरीए. तेने गुरुनी पासेथी मंत्रावी केशरथी तिलक करे, कंकणदोरो दाथमां बांधे. मावा हाथमां स्वस्तिक करीने विधि संयुक्त स्नात्र जणावे. पढी श्री अरिहंतपद्मां तंडुल, धूप, दीप, नैवेद्य प्रमुख अष्ट द्रव्य, वासदेप, नागरवेल प्रमुखनां पान रकेबीमां धरीने, ते रकेबी हाथमां राखे. नव कलशने मौलीसूत्र बांधी, कुंकुमना स्वस्तिक करी, पंचामृतथी जरीने ते कलशो हाथमां लइ प्रथम श्रीअरिहंतपदनी पूजा जणे. ते संपूर्ण जणी रह्या पटी मोटी परातमां ( थालमां ) प्रतिमाजीने पधरावे. “तँी एमो अरिहंताणं” ए प्रमाणे कहेतो थको श्री अरिहंतपदनी पूजा करे. अष्ट द्रव्य अनुक्रमे चढावे. इति प्रथमपदपूजाविधिः ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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