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श्रीदेवपालक विकृत स्नात्रपूजा.
करतो सफल विहाण ॥ ध्वजा उतरती आकाशे, लोमंती अंबरवासे ॥ ८ ॥ कणयकलस शिरे करीयो, अमीय महारस जरीयो । दशमे पद्म सरोवर, दीगे वामादेवी मनोहर ॥ ए ॥ खीरसमुद्र घरे खायो, सुज मन सयल सुहायो || बंदी निज निज गम, श्राव्यं श्राव्यं श्रमर विमान ॥ १० ॥ पेखी पेखी रयपनी राशि, सग पण चढी खाकाशि ॥ जलप जलंतो ए दकिए, जागी वामादेवी तरिका ॥ ११ ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ ढाल ॥
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॥ नवमे मासे मे दिवसे, जायो जिनवर रायो जी ॥ घर गूडी तरियां तोरण लहेके, जिणमंदिर उठायो जी ॥ १ ॥ तत्क्षण उप्पन कुमरी यावे, वधावे जिणंदो जी ॥ स्तर काल मांहि ए जिनवर, प्रगढ्यो पूनमचंदो जी ॥ २ ॥ जलाली वज्र सुर एम बोले, आसन कंपे दो जी ॥ तिहां जो अवधिनाणे तेणी वेला, अवतरीया जिणंदो जी ॥ ३ ॥ तेणे स्थानके जनममहोत्सव करवा, आवे चोसठ इंदो जी ॥ मेरुशिखर पर रत्नसिंहासन, बेठा पास जिणंदो जी ॥ ४ ॥ तिहां हुई सनाथ बत्र शिर सोहे, ढाले चामर सुरेंदो जी ॥ पहुता सुर मली प्रभुथानकवर,
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