Book Title: Vividh Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 469
________________ आरति, दीपक, लूण जल विधि. ४६१ पश्वो, सो नर हो तिलोयपश्वो ॥३॥ए गाथा कहीने मंगलप्रदीप करवो. पठी रकेबीमां कपूर धरी, आरतिमा बत्ती सलगावीने मुख थकी श्रा गाथा कहेवी: ॥अथ श्रारति गाथा ॥ ॥जं मरगय मणि गमिय, विसाल थाल माणिक मंमिय पश्वो॥ एहवण यरकुरु खित्तं,जमन जिण आरत्तयं तुम्हें॥१॥आरत्तिरं नियचय,जिणस्स धूव किसणागरुबायं॥ पासेसु जमउ निङिय, संगमय विभिन्न दिहिव ॥२॥पसणेयवो जवंतर, समझिायं कम्मरेणुसंघायं॥श्रारत्तिय मंगलग्गा,उबलंति सलिलधारा॥३ ॥एवी रीते आरतिकरवी ॥इति संदेप भारतिविधिः॥ ___॥ पड़ी उत्तरासंग करी चैत्यवंदन करवं, अने श्रष्ट प्रकारे प्रजा करवी. कदाचित अष्ट प्रकारे प्रजा न कराय तो शेष फल, फूल ने नैवेद्य जे होय ते एमज चढावी देवां. पनी गुणगीत करवां, जय जय शब्द उच्चारवा, खामिवात्सल्य करवू तथा यथाशक्ति दान देवु ॥शत श्रीस्नात्रपूजाविधिः समाप्तः॥ ॥आरति मंगलदीपक खूण जल विधिः प्रारज्यते ॥ ॥प्रजुश्री अंतर्पट करी,प्रज्जु सन्मुख बेसी भारति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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