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R३५ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. हरता पातक दोष जी ॥ ज० ॥ ६॥ ते वार पछिम व्यंतर महर्डिक, सोल हरि मनरंगे जी ॥ काल अने महाकाल वरूपा, प्रतिरूपा मनरंगे जी॥न॥७॥ पूरणनछ ने माणिना हरि, नीम अने महानीम जी ॥ किन्नर ने किंपुरिस सहपुरिसा, महापुरिस अतिप्रेम जी॥०॥॥अतिकाय ने महाकाय करी, गीत रति हरि जाणो जी॥गीतयशा ए सोल व्यंतरना, श्रधिपति मनमां आणो जी ॥ न ॥ ए॥ ते पण दक्षिणपतिनो पहेलो,पछिम उत्तरनो रंगे जी॥अल्प झझिया वाणव्यंतरना, षोडश हरि सुप्रसंगेजी ॥ ज० ॥१॥सन्निहित ने सामानित हरि, धाय विधाय सुरेशा जी ॥ ऋषि ने झषिपाल व्यंतरी वश्, ईश्वर महेश्वर ईशा जी॥॥११॥ सुवत्स विशाल शचिपति, हास्य हास्यरश्मघवा जी॥श्वेत श्रने महाश्वेत पुरंदर, पयंग पयंगवश् ग्रहवा जी ॥ ज०॥१२॥ ढाल चोथी॥नमो रे नमो श्रीशेजा गिरिवर॥ए देशी
॥ नमो रे नमो श्री शांति जिनेसर, शांतिसुधारस दाता रे ॥ तीन जुवन मनमोहन मूरत, जगबंधव जगत्राता रे ॥ नमो० ॥ १॥ हवे कहुं शशी रविना अनिषेका, एकशत ने बत्रीश रे ॥ जंब्रदीपना दो
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