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श्रीवीरविजयजीकृत पीस्तालीश बागमनी पूजा.श्व
॥ ढाल ॥ सुण गोवालणी ॥ ए देशी॥ ॥ हो साहिबजी, परमातम पूजानुं फल मुज आपो ॥ हो साहिबजी, लाखिणी पूजा रे शे फल नापो ॥ उत्तम उत्तम फल हुं लावू, अरिहानी श्रागल मूकावं ॥आगमविधि पूजा विरचावू, उनो रहीने नावना नावें ॥ हो॥१॥ जिनवर जिन
आगम एक रूपे, सेवंतां न पमो नवकूपे॥आराधन फल एहनां कहीए, था जव मांहे सुखीया थश्ए ॥ हो ॥२॥ परजव सुरलोके ते जावे, इंसादिक अपर सुख पावे ॥ तिहां पण जिनपूजा विरचावे, उत्तम कुलमां जश् उपजावे ॥ हो० ॥३॥ तिहां राज्य शकि परिकर रंगे, श्रागम सुणतां सद्गुरुसंगे ॥ आगमशुं राग वली धरता, जिनागम जिनपूजा करता ॥ हो ॥४॥ सिद्धांत लखावीने पूजे, तेथी कमे सकल पूरे भ्रूजे ॥लहे केवल चरण धमे पामी, शुजवीर मले जो विश्रामी ॥ हो ॥५॥
॥ दोहा॥ ॥ केवलनाण लही करी, पामी अंतर जाण ॥ शैलेशीकरणे करी, पामो अविचल गण ॥१॥
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