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२६५ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम.
॥अथ मंत्रः॥ ॥ ही श्री परम ॥ इति षष्टानिषेके उत्तरपूजा समाप्ता ॥ सर्व गाथा ॥ ५४॥ ॥ अथ सप्तम पूजा प्रारंनः॥
॥दोहा॥ ॥ नमि विनमि विद्याधरा, दोय कोमिमुनिराय ॥ साथे सिछिवधू वस्या, शत्रुजय सुपसाय ॥ १॥ ॥ ढाल ॥ सहसावनमां एक दिन
खामी ॥ ए देशी ॥ ॥श्राव्यां दुं आश नस्यां रे, वालाजी अमे आव्यां रे आश नस्यां ॥ ए बांकणी ॥ नमि पुत्री चोसठ मलीने, झषन पाउँ पस्यां ॥ कर जोमी विनये प्रनु
आगे, एम वयणां उच्चस्यां रे ॥ वा ॥१॥ नमि विनमि जे पुत्र तुमारा, राज्यनाग विसस्या॥ दीनदयाले दीधो पामी, आज लगे विचस्यारे॥वा॥२॥ बाह्य राज्य उनगी प्रनु पासे, आवे काज सस्यां । अमे पण तातजी कारज साधु, सान्निध्य आप कस्यां रे ॥ वा०॥३॥ एम वदंती पागे चढंती, अणसण ध्यान धस्यां ॥ केवल पामी कर्मने वामी, ज्योतसें
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