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श्रीगंजीरविजयकृत नवपदपूजा. ३०७ तस पद रज सम मुनि गुणरंगी, जिनजक्तिश्री उमाह्या ॥ मोह सुजटने गवा काजे, गंजीर विजय गुण गाया रे ॥ में इन ॥७॥ संकट विघन पूर पलाया,रागद्वेषी वीरलाया॥सकल संघने वीरशासन सुर, होजो मंगलदाया रे॥में श्न॥ए॥व्योम युग अही ऊर्वी संवत्सर, सीत सुची मास सुहाया ॥गुरु चतुर्थी राजनगरमां, मंगलरंग वधाया रे ।। में इन विध जिनगुण ध्याया ॥ १० ॥ समाप्त ॥
॥ इति दशविध यतिधर्मपूजा संपूर्णा ॥ ॥ज नमो जगत्सदपाय श्रीसिक्ष्चक्राय ॥ ॥ महा मुनिराज श्रीगंजीरविजयजी विरचित ॥ ॥ श्री नवपदजीनी पूजा प्रारंनः॥
॥दोहा॥ ॥ प्रणमी जिनशासन पति, यशोविजयादि सार॥ रचना अर्थ हृदय धरी, नव पद पूजा उदार॥१॥ पंच वरण नव दल कमल, रच नव पद हृदि धार॥ पंचामृत कलशा जरी, नव अनिषेक उदार ॥२॥ प्रगट ज्ञान ज्योतिमया, प्रातिहारजवंत ॥ देशना नंदित जविजना, नमीए ते अरिहंत ॥३॥ अनंत
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