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५ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. यथोचित आवरण नाश जे, शुद्ध ज्ञान सुबोध ॥ षट् अव्य ज्ञान प्रकाशवा, हेतु शान सुशोध ॥२॥ वितथ वाद जेमां नहीं, न इला वाद बनाव ॥ मति आदे पण ज्ञान ते, वदे नित सदनाव ॥ ३ ॥ गुरु सेवी लहे योग्यता, निज घट देखे सदैव ॥डेय हेय उपादेय ते, तमगत घट ज्युं दीप ॥४॥
॥ ढाल १ ली ॥ राग धनाश्री॥ ॥ चूल्यो नमत कहो बे अजान ॥ ए चाल ॥
॥ज्ञान हि नमन बनावे सुज्ञान ॥ ज्ञा॥ खपर नाव प्रकाशी दीखावे, पर्याय अनंत विधान ॥ ज्ञाप ॥१॥नेदान्नेद स्वजावनो ग्राही, परिणति मुख्य पीठान ॥ ज्ञा॥२॥ ज्ञापक सकल पदारथ जावे, निर्मल पंचहि ज्ञान ॥ज्ञा०॥३॥ साधन साध्य उन्नय निरधारे, संशय सवहर जान॥ज्ञा०॥४॥ स्याद्वादमय वस्तु जणावे, विशेष सामान्य विधान ॥शा॥
॥ ढाल २जी॥ राग ॥ ॥तुम चिरन श्रानंद लाल, तोरे दरिशणकी
__ बलीदारी॥ए राग॥ ॥जिनशान सकल श्राधार सार, नमुं नित नित बे कर जोरी॥ जि०॥१॥ नदय अन्नदय न जे
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