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विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम.
दिन रात ||जी० ॥ परिणमी शुद्ध खनावमें रे, लेश्या शुद्ध सुहात || मोहवने जमवो नहीं, श्रातम चरण विख्यात ॥ जी० ॥ १ ॥ वीर जिणंद वाणी सुनी रे, खरस रंगी सव धात ॥ सुजश स्वरूप वृद्धि करी, गंजीर सलोनी वात || जी० ॥ २ ॥
॥ इति चारित्रपदपूजा ॥ काव्य तथा मंत्र बोलवां ॥ ॥ अथ तपपदपूजा ए मी ॥ ॥ दोहा ॥
॥ कर्मतरु जंजन गजवरु, नमो तीव्र तप सार ॥ एम नव पद सिद्ध यंत्र ए, अरिहंत श्री मोजार ॥ १ ॥ स्वरश्री प्रमुख देवता, सिद्ध प्रमुख पद वर्ग ॥ तत्वार लब्धि पदो, गुरुपद नमुं समग्र ॥ २ ॥
त्रिवि कलशो करी, नव निधि ग्रह निर्धार ॥ जयादि अधिष्टातृ च, जिनजननी जिन धार ॥ ३ ॥ विद्या शासन सुर सुरी, प्रातिहार्य शुरवीर ॥ दिक्पाल सिद्धचक्र ए, थापी घरचो धीर ॥ ४ ॥ कलशे अमृत मंगलो, चीते क्षिति पीठ ॥ पूर्व सूरि कहे सेवीए, शिवसाधन ए जीव ॥ ५ ॥ नूत जावि वर्त्तमाननां कठिन कर्म हरनार ॥ निकाचित पण सवि खपे, तप कर बार उदार ॥ ६ ॥ क्षमा
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