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श्रीगंजीरविजयकृत नवपदपूजा. ४० गम क्रिया नाव ॥ सोही० ॥ रीको उत्जयमें साचा जानी, नक्ति ज्ञान खन्नाव ॥ सोही० ॥२॥ थिर रही आतम नावे नित करी, पर सुख रतिनो अनाव ॥ सोही ॥सकल समृद्धि अष्टक शकि, निज घटमें प्रगटाव ॥सोही॥३॥तेम सघली श्री नव पद कि, श्रातम झछिनाव ॥सोही॥ साधन असंख कहे जिन देवे,नव पद मुख्य लखाव ॥सोही॥॥श्रालंबी नव पदने ध्यातां,यातम ध्यान निपाव ॥ सोही॥तम नव पद नव पद बातम,झान क्रिया नय लाव॥सोही। ॥५॥ए दो नयमें सग नय सेतर, पऊय निश्चय नाव ॥सोही०॥ यशोविजय वृद्धि तव गंजीर, जिनगुण मंगल गाव ॥ सोही० ॥६॥ इति तपपदपूजा ॥ए॥
॥कलश ॥ ॥ एम विधन वारण, सिकि कारण, सिद्धचक्र पदावली ॥ विबुध चारनी गहन रचना, सुगम ए में संकली ॥ वृषिविजय गुरुपाद सेवी, गंजीर जंपे मन रली॥गणीश सत्तावन पौषी सित बल, गोघे मन आशा फली ॥ इति श्रीनवपदपूजा संपूर्ण ॥
॥अथ श्रीनवपदजीनी आरति॥ ॥ नम, मेव, नम,मेव, नव पद जयकारी॥नम॥
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