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३७ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. शान्त प्रमोदघन, जगप्रधान जिनंद ॥ नविक कमल रवि रूप थुणे, मुद नर सुर नरकंद ॥४॥ जस ध्याने सुखीया थया, राजा श्री श्रीपाल ॥ पुष्ट करमदल चूरवा, नव पद पूजो त्रिकाल ॥५॥ नव पद नक्ते वासीया, जे पूजे नर नार ॥ ध्यान सिकि तप संपजे, सुख संपत्त विस्तार ॥६॥जिननाम कर्मोदये करी, जगहित दीए उपदेश ॥पूरण ब्रह्म पावन सदा, अतिशय शोला अशेष ॥७॥ घाति कर्म चउ खपी गयां, रह्यां श्रघाति चार ॥ जग सुखी पंच कल्याणके, नमुं ते जगदाधार ॥७॥
॥ अथ अरिहंतपदपूजा १ ली ॥ ॥ ढाल १ ली ॥ राग रवी, ताल तुमरी॥
॥ (पन घटवा रोकी रे ) ए राग ॥ ॥ पूजो श्री तीरथपति अरिहा, पाप पखालन शिवरसिया ॥ पू॥ धर्मधुरंधर धर्मपति जिन, धीरज मेरु अधिक वरीया ॥ पू॥१॥ विषय ताप तापित जीय गरण, देशना अमृत घन करीयां ॥पू०॥ खायक अनंत सहज जस वीरज, सुर अतुल बल गुण दरिया ॥पू॥२॥श्रदय निरमल ज्ञान प्रकाशे, (जग)जाव सकल दरशित करीया॥पू०॥जगजन
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