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३०७ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. विधि विष्णु शंकर न सोहाय ॥मनडु मोयु रे मनमोहनजी ॥पूजतां पमिमा जिनराजनी॥ मन ॥ नवनवना छरित पलाय ॥ मन॥१॥ अंजनगिरि ए चारथी ॥ मन ॥ चार दिशाए लाख लाख ॥ मन ॥ जोयण गये जे वाव्य ले ॥ मन० ॥ लाख जोयणनी ते नाष्य ॥ मन॥२॥जोयण दश जंमी कही॥ मन ॥ मत्स्य विनानुं जल सोय ॥ मन ॥ वाव्य एकने चारे दिशे ॥ मन० ॥त्रण त्रण सोपान ते होय॥मनः॥३॥रत्नतोरण चारे दिशे॥ मन॥ ते फलके तेजे अपार ॥ मन ॥ पणसय जोयण पूर वाव्यथी॥ मन ॥ चल दिशाए वन चार ॥ मन० ॥४॥ पहोलपणे शत पांचनां ॥ मन० ॥ लांबा पुष्करिणी प्रमाण ॥ मन०॥ वाव्य मध्ये एक दधिमुख ॥ मन॥ स्फाटिक रत्ननो जाण ॥ मन ॥५॥ चोसठ सहस्स जोयण उंचो॥ मन०॥ नीचे उपर दश हजार ॥ मन ॥ जामपणे ते जाणवो ॥ मन०॥ सहस्स जोयण कंद विचार ॥ मन ॥६॥ एम सोले दधिमुख जाणजो॥मन॥ सर्व प्यालाने थाकार ॥ मनः॥ सोल जपर सोल चैत्य ॥ मन ॥ अंजनगिरि सरखा धार॥मन०॥ ७॥ एकसो चोवीश
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