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३१६ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. चाली रे ॥ अ० ॥ वंदो प्रतिमा रढियाली रे॥ अण ॥२॥जिनवरना बार लाख देहरां रे॥१०॥ सनत्कुमारे जलेरां रे ॥०॥ साठ लाख ने कोडि एकवीश रे ॥ १०॥ पडिमा कहे त्रिजग ईश रे॥ अण ॥३॥ माहें चोथं चित्त धारो रे ॥अ॥प्रासाद आठ लाख संजारो रे ॥ अ॥ कोडि चउद ने लाख चाली रे ॥ अ॥प्रजुध्याने सदा दीवाली रे ॥ श्रम ॥४॥ पांचमे प्रासाद लाख चार रे ॥ श्र० ॥ सात कोडि वीश लाख जिन धार रे ॥ १० ॥ लांतके सहस्स पच्चास रे ॥ अ० ॥ नेq लाख जिन नमीए उदास रे॥अ॥५॥सातमे शुक्र देवलोके रे॥१०॥ प्रासाद चालीश सहस्स थोके रे॥ अ०॥ पमिमा बहोंत्तेर लाख मान रे॥०॥सदा धरीए एदनुं ध्यान रे॥०॥६॥ आठमुं सहस्रार ते कहीए रे॥१०॥ जिनघर हजार बलहीए रे॥०॥ दश लाख ने एंशी हजार रे ॥ श्र० ॥ हुं प्रणमुं उठी सवार रे॥श्रण ॥७॥ श्राणत प्राणते जिनगेह रे॥०॥ नाखे चारसें अरिहा तेह रे ॥१०॥बहोंतेर हजार जिनराय रे ॥ अ० ॥ जस प्रणम्या पातक जाय रे॥श्र० ॥ ७॥ आरण अच्युते वंदो रे ॥ अ०॥ चैत्य त्रणसे
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