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३७६ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥राग देशी फीकोटी तुमरी ॥ आज पुगधा
मेरी मीट गरे ॥ ए देशी ॥ ॥राज मव मन वस रही रे, अमल कमल सम जुगल नयन ॥समरससे विकस रही रे॥ए आंकणी॥ मजावमंथर अखी तोरी, गर्व गुमान वरी जीत मृदु गोरि ॥ नमन दमन गुण रमण नीपाइ, महर मद हरशही रे॥राज॥१॥ मजाव करत वज्रशंजोरी, श्रममद अचल शिखर सो फोरी ॥ केवली नासरुके कीनसेती, सुजोत पसर रही रे॥राज॥२॥माने धारो कृत्य न करीने, माने संगथी मनसा हरीने॥ प्रजुपद नमन दमन चित्त लाश, जय पामे नवि सही रे॥राज०॥३॥मान अनावे विनय सुहावे,बोध सद शुं तन मन नावे॥मनन सेवन लय लावो नाश, गुणगण लहे गहगही रे॥ राज ॥४॥ निरमद सुगुण पुरंदर तोरी, हरि हर ब्रह्म करे केम होरी॥ वासव श्रेणि रही कर जोरी,तुज पदमें नम रही रे॥ राज० ॥ ५॥ हीन अधम नर तुमने बोरी, गुणयुत वचन मनसा जोरी॥ कल्पित रचना प्रीत लगा, मुःख मान वसे लही रे ॥ राज ॥६॥ जेम जेम मूर्ति नीहा तोरी, तेम तेम विपत् कठिन गए
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