________________
३०५ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ स ॥ नाग ने सोवन्न सोहता रे, ए नामे द्वार वखाण ॥ स ॥ ह० ॥ ए॥ चैत्य मध्ये मणिपीलिका रे, लांबी पहोली सोल ॥ स० ॥ जोयण आठ उंची कही रे, लोकप्रकाशे ए बोल ॥ स ॥६० ॥ १०॥ लांबो पहोलो पीठिका समो रे, देवबंदो अनिराम ॥ स ॥ जोयण सोल अधिक उंचो रे, सोहे पीठिका गम ॥ स ॥ ह ॥ ११॥ ते मध्ये सिंहासने रे, जिनप्रतिमा जयकार ॥ स ॥ सगवीश सगवीश चिहुं दिशे रे, शाश्वती नामे चार ॥ स० ॥ ह ॥ १२ ॥ ते जिनप्रतिमा वंदीने रे, मी प्रमादने बेक ॥ स ॥ तीर्थजले कलशा जरी रे, देव करे अनिषेक ॥ स ॥ ह० ॥१३॥ केसरे पूजी गुण स्तवे रे, देव देवी धरी नेह ॥ स ॥ धर्मचं जिन पूजतां रे, वर्षे मोतीना मेह ॥ स॥हा॥१४॥ काव्यं । स्नात॥इति प्रथमानिषेके प्रथम पूजा स० ॥ ॥अथ दितीय पूजा प्रारंजः॥
॥दोहा॥ ॥ करुं वर्णन बहु नावथी, शेष रह्यो अधिकार ॥ सुणो नविजन एक चित्तथी, न रहे पाप लगार ॥१॥ दविणे अंजनगिरि तिहां, चमर नामे सुरनाथ ॥ करे मोटव अहाश्नो, वरवा शिववधू हाथ ॥२॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org