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२६ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. विनीत ॥ त्रिकरण योगे ए परिहरे, नेद अढार गुणधाम हो विनीत ॥ना॥ दशअवस्था कामनी,त्रेवीश विषय हरंत हो विनीत ॥ अढार सहस शीलांगरथे, बेग मुनि विचरंत हो विनीत ॥न॥३॥ऽव्यथी चार दारा तजे, नावे परपरिणति त्याग हो विनीत॥दश समाहि गण सेवतां, त्रीश अबंज नाम याग हो विनीत॥न०॥४॥ दीए दान सोवन कोमिनु, कंचनचैत्य कराय हो विनीत ॥ तेहथी ब्रह्मवत धारतां, अगणित पुण्य समुदाय हो विनीत ॥ नमो० ॥५॥ चोराशी सहस मुनिदानवें, गृहस्थ नक्ति फल जोय हो विनीत ॥ क्रिया गुणगणे मुनि वमा, जाव तुल्य नहीं कोय हो विनीत ॥न॥६॥दशमे अंगे वखाणीयो, चंडवर्मा नरिंद हो विनीत ॥ तेम आराधी प्रजुता वस्यो, सौलाग्यलदमी सूरींद हो विनीत ॥ न० ॥॥ इति ब्रह्मचर्यपदपूजा छादशी ॥१५॥ ॥ अथ त्रयोदश क्रियापदपूजा प्रारंनः॥
॥दोहा॥ ॥ आत्मबोध विण जे क्रिया, ते तो बालकचाल॥ तत्त्वारथथी धारीए, नमो क्रिया सुविशाल ॥१॥
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