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श्रीविजयलक्ष्मीसूरिकृत वीश स्थानकनी पूजा. २९३ ॥अथअष्टादश अनिनवज्ञानपदपूजाप्रारंनः॥
॥ दोहा ॥ ॥ ज्ञानवृक्ष सेवो नविक, चारित्र समकित मूल॥ अजर अगम पद फल लहो, जिनवर पदवी फूल ॥१॥ ॥ ढाल ॥ कोश्लो पर्वत धुंधलो रे लाल ॥ ए देशी ॥
॥अनिनवज्ञान गणो मुदा रे लाल, मूकी प्रमाद विनाव रे॥हुंवारी लाल ॥ बुद्धिना श्राप गुण धारीए रे लाल, श्राप दोषनो अनाव रे ॥ हुँ वारी लाल ॥ प्रणमो पद अढारमुंरे लाल ॥१॥ए आंकणी॥देशाराधक किरिया कही रे लाल, सर्वाराधक ज्ञान रे॥ हुँ॥ मुहर्तादिक किरिया करे रे लाल,निरंतर अनुजवज्ञान रे॥हुँ॥प्र॥२॥ज्ञान रहित किरिया करे रे लाल, किरिया रहित जे ज्ञान रे ॥ हुँ ॥ अंतर खजुश्रा रवि जिस्यो रे लाल, षोमशकनी ए वाण रे ॥ ९ ॥ प्र०॥३॥बह अहमादि तपे करी रे लाल, अज्ञानी जे शुद्ध रे ॥ हुँ०॥ तेहथी अनंतगुणशुकतारे लाल, झानी प्रगटपणे लक रे ॥ हुं॥॥४॥राचे न जूठ किरिया करी रे लाल, ज्ञानवंत जुवो युक्ति रे ॥ हुं०॥जूठ साच बातमझानथी रे लाल, परखे निज
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