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विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम.
॥ केसर चंदनशुं घसी रे, स्वामी विलेपन अंगे बाल ॥ लाल सुरंगी रे साहिबो रे ॥ १ ॥ नू जल जलण अनिल तरु रे, थावर पंच प्रकारो लाल ॥ सूक्ष्म नामकरम थकी रे, जरीया लोक मोजारो बाल ॥ ला० ॥ २ ॥ निज पर्याप्ति पूरया विना रे, मरता ते अपजत्ता लाल ॥ साधारण तरुजातिमां रे, जीव शरीरे अनंता लाल ॥ ला० ॥ ३ ॥ अंग उपांग जे थिर नहीं रे, नाम थिर ते दीठो लाल ॥ नानि देवे
शुजाकृति रे, दुर्जग लोक अनीठो लाल ॥ ला० ॥ ४ ॥ न गमे जे स्वर लोकमां रे, दुःखर खेदनुं धामो लाल ॥ साधुं लोकने नवि गमे रे, वचन नादेय नामो लाल || ला० ॥ ५ ॥ अपजस नामथी निंदता रे, खेद विना लोक अनेको लाल ॥ श्रीशुजवीरने
वि होवे रे, ए दश मांहेनी एको लाल ॥ ला० ॥ ६॥ ॥ काव्यं ॥ जिनपते० ॥ १ ॥ सहजकर्म० ॥ २ ॥
॥ अथ मंत्रः ॥
॥ ॐ श्री परम० ॥ स्थावरदशक निवारणाय चंदनं य० ॥ खा० ॥ इति स्थावरदशक निवारणार्थं द्वितीय चंदनपूजा समाप्ता ॥ २ ॥ ४२ ॥
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